Tuesday, June 28

"जब आशाएं दम तोड़ती हैं"

आशाएं ज़िन्दगी का आधार हैं, इन्ही के दम पर पर हम हर कदम चलना सीखते हैं.
जीवन के मुश्किल लम्हों में भी ये आशाएं जीवन का आधार बन जाती हैं, और एक तकलीफों की काली रात में भी आने वाले सवेरे की आशा हमें चलने की हिम्मत देती है, और हम चलते रहते हैं उस उजाले की आस में जो दूर-दूर तक दिखाई भी नहीं दे रहा होता है.
आशाओं के इस जादुई प्रभाव से ज़िन्दगी के मुश्किल पड़ाव भी आसान हो जाते हैं, और जीवन में कठिनाइयों का सामना करने की ताकत मिलती है. अगर बेहद खूबसूरती से "आशा" की व्याख्या की जाये तो ये कहना कहीं भी गलत नहीं होगा की "आशाएं, ईश्वर का एक अनमोल तोहफा है, जो उसने इस श्रृष्टि की सबसे अनमोल रचना "मानव" को सौंपा है. आशाएं, इश्वर के दिए हुए वो पंख है, जिनकी बदौलत हर इंसान,उम्मीदों और ख्वाहिशों के आसमान में उड़ान भरता है, आशाएं जीने का एक जरिया है, ये एक नन्हा सा एहसास है, जो इश्वर की आराधना के जितना पवित्र है."
ये आशाएं ओस की बूंदों की तरह नाज़ुक होती हैं जो इंसानो के नयी पत्तियों जैसे कोमल ह्रदय पर मोतियों की तरह सजी रहती हैं, और सपनो के समंदर में गोते लगाता हुआ हर दिल, इन आशाओं को संजो के जीवन के हर पल की गहराई को महसूस करता जाता है.
सीधे शब्दों में कहा जाये तो आशाएं, इंसान को जीना सिखाती हैं, ये अपनी कोमलता से हर हृदय को ख्वाहिशों व सपनो की अनमोल दुनिया का रास्ता दिखाती हैं. और हर मासूम दिल इन आशाओं को, अपनी ख्वाबों भरी आँखों में संजोये हुए, जीवन के सफ़र पर चल निकलता है.
पर क्या होता है जब ओस की बूंदों जैसी कोमल आशाओं से भरे मासूम दिलों को ठेस पहुंचती है; वक़्त की, हालात की और हार की. कोई सपना पूरा कर लेने की चाह में, अनगिनत आशाओं और ख्वाबों से भरा कोई नन्हा सा दिल जब जीवन के रास्तों पे उतरता है, तो वो बिलकुल अनजान होता है, जीवन के रस्ते में आने वाले नकारात्मक "सच" से, जो जीवन के संघर्ष का सार्थक है.
संघर्ष ही जीवन का मूल है,परन्तु ख्वाहिशों में मग्न मन ये भूल जाता है और अबोध बालक की तरह, अनजान बन कर चलता रहता है, और उस वक़्त टूट के बिखर जाता है, जब  "संषर्ष का सत्य" से उसका सामना होता है.
जीवन के इस दोहरे पड़ाव पर, अपनी आत्मशक्ति खो देने वाले मुसाफिर की आशाएं दम तोड़ देती हैं, और वो थक कर, रुक जाने का फैसला कर लेता है. वो आशाएं जो उसको आगे बढ़ने का साहस देने के लिए, दिया गया ईश्वर का नायब तोहफा थी, सफ़र के शुरुआत में ही दम तोड़ जाती हैं, और बाकी रह जाता है; टूटे हुए ख्वाबों से घायल दिल.

क्या होता है "जब आशाएं दम तोड़ती हैं", हम हार कर, जीवन के सत्य का सामना किये बिना ही मुह छुपा कर पीछे हट जाते हैं और नीरसता को गले लगा लेते हैं. हम एक बार भी ये नहीं सोचते की ईश्वर के दिए हुए अतुल्य उपहार का हम अपमान कर रहे हैं. इस संघर्ष से भरे जीवन में आगे बढ़ते रहने के लिए ही तो उस श्रृष्टि के रचयिता ने हमें "आशाएं " भेंट की, ताकि हम हर आने वाली मुसीबत का, जीवन के हर पड़ाव का डट कर सामना कर सकें ना की, कायरों की तरह हार मान कर रस्ते से हट जायें.
यूँ रस्ते में रुक कर हम हार स्वीकारने के साथ-साथ उस ईश्वर का भी अपमान कर देते हैं, जिसने हमें "आशाओं" का अनमोल तोहफा भेंट किया. और उस क्षण के बाद हमारा जीवन और भी कठिनाइयों भरा और अर्थ-रहित हो जाता है.
ये आशाएं ईश्वर की देन है, हम इस के सही हकदार तब ही कहला सकते हैं जब हम इनकी सुरक्षा करना के काबिल हों, ये हमारी आत्मा से जुदा हुआ ईश्वरीय एहसास है, इनको अपने दिलों में सहेज के रखना हमारी ज़िम्मेदारी है और हमें हमारी जिम्मेदारियों से मुह नहीं फेरना चाहिए, बल्कि निडर हो कर जीवन के सत्यों का सामना करते हुए अपनी मंजिल की तरफ बढ़ना चाहिए.
अगर हम इस नायब तोहफे को,अपने दिलों में संजो के, हिम्मत न हारते हुए आगे बढ़ेंगे तो, मंजिलें ज़रूर मिलेंगी और, ख्वाहिशें ज़रूर खिलेंगी. ज़िन्दगी के इस लम्बे सफ़र पर चलते समय हमें ये कभी नहीं भूलना चाहिए कि, आशाओं का काम है हमारे सपनो को पंख देना और हमें चुनौतियों से लड़ने का जज्बा देना, और हमारा कर्त्तव्य है, इन आशाओं को अपने दिल में संजो के रखना, और किसी भी मुश्किल मोड़ पर इन्हें टूटने ना देना.
क्योंकि जब इंसानों कि "जब आशाएं दम तोड़ती हैं", तो ईश्वर को ठेस पहुंचती है.

Wednesday, June 15

धुंधली सी तसवीर



कुछ यूँ ही धुंधली पड़ गयी होगी वो तसवीर मेरी,
जिसको बड़ी शिद्दत से, मैंने तेरे दिल में उकेरा था,

बीते लम्हों को याद कर, पूछ बैठता है ये पागल दिल मुझसे अकसर,
हकीकत थे वो लम्हे प्यार के, या यूँ ही पलकों पर ख्वाबों का बसेरा था,

वो घड़ियाँ बेमिसाल थी, जब ढला करती थी तेरी बाहों में सांझें,
वो वक़्त नायब था, जब तुझसे शुरू - तुझपे ख़त्म हर ख्वाब मेरा था,

राहें भी तब खो गयीं, जब तुझ बिन चलने की आदत ना थी हमें,
खो गए थे गहरी रात में हम और बड़ी दूर वो सवेरा था,

एक मुद्दत लगी उन जख्मों को भरने में, जो तेरे इश्क ने थे तोहफे में दिए,
रात सो गयी वक़्त के आगोश में, इस दिल में कायम अब भी वो अँधेरा था,

कुछ यूँ ही धुंधली पड़ गयी होगी वो तसवीर मेरी,
जिसको बड़ी शिद्दत से, मैंने तेरे दिल में उकेरा था

Monday, June 13

बेखबर दबी दबी सी ख्वाहिशें...


बेखबर दबी दबी सी ख्वाहिशें...
क्या गुनाह कर दिया, अगर जग पड़ी
चल दी अगर खुशियों की राह पर ये ज़िन्दगी,
क्यूँ नहीं हुई बर्दाश्त, ज़माने से ये आज़ादी,
गर मुस्कुरा गए ये लब, देख कर अल्हड़ से ख्वाब,
क्यूँ निगाहों पर ये दुनिया, पहरा लगाने लगी,
दे दिया खुदा ने हक गर जीने का सभी को,                  
क्यूँ इंसानी हुकूमत इस बात पर मचल गयी,
पूछ लिया मैंने जब डाल के निगाहों में निगाहें, ये सवाल,
क्यूँ तुम्हारी मगरूर निगाहें निशब्द हो के झुक गयी,
बेखबर दबी दबी सी ख्वाहिशें...
क्या गुनाह कर दिया, अगर जग पड़ी

Saturday, June 11

जुगनुओं सी ख्वाहिशें



जगमगाते जुगनुओं के जैसी ख्वाहिशें उड़ रही हैं ,मेरे हर ओर,
उलझन में है दिल, किसको जाने दूं ,किसको मुठ्ठी में बंद कर लूं,
उमंगो और ख्वाबों से भरी हुई है ,ये ज़िन्दगी लबालब,
किस ख्वाब को आंसुओं में बहा दूं, कौन सी उमंग आँखों में भर लूं,
यूँ तो ज़िन्दगी की राह में बिखरे काँटों से घायल हैं , पाँव मेरे,
उलझन में है ये नादान दिल, कौनसी राह छोड़ दूँ, चुन कौनसी राह-ए-गुज़र लूं,
बीते वक़्त के पन्नो में गुम हैं बेशकीमती पल ,मेरी ज़िन्दगी के,
आगे चलते रहना उसूल है ज़माने का, एक बार पीछे मुड़ के देख मगर लूं.
जगमगाते जुगनुओं के जैसी ख्वाहिशें उड़ रही हैं ,मेरे हर ओर,
उलझन में है दिल, किसको जाने दूं ,किसको मुठ्ठी में बंद कर लूं,