Saturday, October 22

दुआ



हमें लगा हम से नाता तोड़ कर कहीं दूर जा रहा था वो
मुह मोड़ कर हमसे, हमारी हर नब्ज़ को आजमा रहा था वो
कभी यूँ भी लगा की बेवजह सजा दे कर हमको रुला रहा था वो
मगर जब रु-ब-रु हुए हकीकत से  तो नज़रें झुक गयी हमारी
सबका खुदा होने के नाते, कुछ अंधियारी गलियों में दीप जला रहा था वो
इतना तो यकीं था उसको, के लांघ लेंगे हर अँधेरे को  हम तो अकेले ही
जिनको थी उसके सहारे की जरुरत, उनका साथ निभा रहा था वो
हमसे की थी उसने इंसान होने का फ़र्ज़ निभाने की मासूम सी गुज़ारिश
अपने खुदा होने का फ़र्ज़ तो हर कदम पे बखूबी निभा रहा था वो

इस दीपावली गर हाथ उठें दुआ मांगने के लिए, तो कोशिश कीजियेगा की इश्वर से वो मांगे सकें जो हमारा हक़ है, इंसानियत की कसौटी पर चलने का हौंसला..


शुभ दीपावली 

5 comments:

  1. @कुछ अंधियारी गलियों में दीप जला रहा था वो
    वाह!

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  2. reacharcs..

    welcome to my blog and thanks a lot

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  3. स्मार्ट इंडियन ,,,

    thanks for visiting my blog i wlecome u here...

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  4. Your Hindi poems are brilliant ... why don't you write more?

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